Wednesday, January 5, 2011

J-20 Stealth Fighter Aircraft

लड़ाकू विमान बनाने में चीन ने दी अमेरिका को चुनौती


 
बीजिंग.  अर्थव्यवस्था के मामले में अमेरिका को चुनौती दे रहा चीन अब हथियारों और सैन्य साज-ओ-सामान के मामले में भी दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क से होड़ ले रहा है। इसी सिलसिले में चीन ने रडार की पकड़ से बचकर निकलने वाले लड़ाकू विमान का नमूना तैयार कर लिया है। मौजूदा समय में ऐसा विमान सिर्फ अमेरिका के पास है। लेकिन जानकारों का मानना है कि इस नमूने के आधार पर विमान तैयार होने में अभी कुछ और साल लगेंगे।

जे-20 नाम का यह चीनी विमान अमेरिका के एफ-22 विमान से होड़ लेगा। इंटरनेशनल असेसमेंट एंड स्ट्रेटजी सेंटर में चीनी सेना के के विशेषज्ञ रिक फिशर का कहना है कि इस दशक के आखिर तक यह विमान अमेरिकी एफ-22 से टक्कर ले सकेगा। 

 जापान के अख़बार असाही शिंबून ने चीन के सैन्य सूत्रों के हवाले से छापा है कि चीन ने जे-20 विमानों की परीक्षण उड़ानें इसी महीने शुरू करने का ऐलान किया है। लेकिन युद्ध के लिए इन विमानों को तैयार करने में  2017 तक का समय लग सकता है।

इस विमान का हल्का परीक्षण पिछले हफ्ते दक्षिण पश्चिम चीन में किया गया है। यह खबर उस समय आई है जब कुछ ही दिनों बाद अमेरिका के रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं। इस यात्रा पर गेट्स का लक्ष्य चीन के साथ सैन्य संबंध की बहाली होगी जो एक साल पहले अमेरिका द्वारा ताइवान को अरबों डॉलर के हथियार बेचने के बाद चीन द्वारा तोड़ दिए गए थे।

यह फाइटर प्लेन बड़ी मिसाइलों से लैस होगा और पश्चिमी प्रशांत महासागर में मौजूद अमेरिकी द्वीप गुआम तक इसकी पहुंच होगी। साथ ही इसमें हवा में ही ईंधन भरने की सुविधा भी होगी। हालांकि जानकारों का यह भी दावा है कि अमेरिका के एफ-22 विमानों के स्तर तक पहुंचने के लिए अभी 10 से 15 साल का वक्त लगेगा। 2009 के आखिर में चीनी वायुसेना के उप प्रमुख जनरल हे वीरोंग ने कहा था कि रडार से बचकर निकल जाने वाले लड़ाकू विमान 2017 और 2019 के बीच पूरी तरह से तैयार होंगे। चीन के रक्षा मंत्रालय ने इस रिपोर्ट के बाबत पूछे जाने पर टिप्पणी से इनकार कर दिया है।

पीएलए के विशेषज्ञ डेनिस ब्लास्को ने कहा कि चीन ने इस जेट विमान के लिए जो समय सीमा तय की है, वह अंदाजे से कहीं ज़्यादा है।  पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा जे-20 के विकास को लेकर पश्चिमी देशों के जानकार शक भी जाहिर कर रहे हैं। डेनिस ब्लास्को ने कहा, अभी परीक्षण उड़ान का सबूत सामने नहीं आया है और किसी नमूने के परीक्षण के बाद भी वास्तविक विमान बनाने में काफी वक्त लगता है। 

रूस की ओर बढ़े ड्रैगन के कदम
दक्षिण एशिया में भारत से लगे इलाकों, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में अलग-अलग परियोजनाओं पर काम कर रहे चीन ने अब रणनीतिक और कारोबारी नजरिए से अहम मध्य एशिया पर अपनी नज़रें गड़ा दी हैं। चीन ने रूस के वर्चस्व वाले इलाके तजाकिस्तान में व्यापारिक ठिकाने का निर्माण कर रहा है। गौरतलब है कि रूस भारत का पुराना और भरोसेमंद दोस्त है।

तजाकिस्तान के मुर्गब इलाके में चीन की मदद से एक नए कस्टम कंपाउंड का निर्माण किया जा रहा है। यह कंपाउंड इसी साल खोला जाएगा। इस कस्टम कंपाउंड में चीन से कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू इस्तेमाल की चीजों को लेकर आने वाले ट्रक पहले से कहीं ज़्यादा तादाद में खड़े किए जा सकेंगे। चीन मध्य एशिया में इन सामानों की खपत बढ़ा रहा है। कारोबारी नजरिए से यह कंपाउंड चीन के लिए बेहद अहम होगा। 

चीन जहां एक ओर पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी पैठ बना रहा है वहीं अपने पश्चिमी मोर्चे पर भी वह सक्रिय है। इस  इलाके में पहले रूस का वर्चस्व था। चीन के अफसर मध्य एशिया को भी ऊर्जा सुरक्षा,  व्यापार बढ़ाने, सांप्रदायिक स्थिरता और सैन्य रक्षा के लिहाज से अहम मोर्चा मान रहे हैं। चीन का सरकारी तंत्र इस इलाके में पाइपलाइन बिछा रहा है। इस इलाके में रेल, हाई वे का निर्माण भी किया जा रहा है। चीन मध्य एशिया के कई शहरों में कन्फ्यूसियस इंस्टीट्यूट खोलकर मंदारिन भाषा पढ़ा रहा है।

अहम है मध्य एशिया का इलाका
सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में मध्य एशिया में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देश आज़ाद हुए। 19 वीं सदी में इस इलाके में ब्रिटेन और रूस के बीच वर्चस्व की लड़ाई थी। लेकिन आज चीन, रूस, अमेरिका के बीच मध्य एशिया पर वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। चूंकि, इस इलाके से अफगानिस्तान में सेना भेजी जा सकती है, इसलिए यह सैन्य रणनीति के लिहाज से भी अहम इलाका है।

पीओके में बांध बनाने के लिए पाक ने चीन से मांगी मदद
पाकिस्तान ने चीन से बेहतर रिश्ते का फायदा उठाने का सिलसिला जारी रखा है। ताज़ा मामले में पाकिस्तान ने चीन से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में तीन बांध बनाने में मदद करने की गुहार लगाई है। चीन में पाकिस्तान के राजदूत मसूद खान ने चीन से इस बारे में अनुरोध किया है। गौरतलब है कि 2011में पाकिस्तान और चीन अपनी दोस्ती की 60 वीं सालगिरह मना रहे हैं। चीन ने पाक के कब्जे वाले कश्मीर में इन बांधों को वित्तीय मदद देने का संकेत दे दिया है। 

मसूद खान ने चॉन्गिंग शहर में साउथवेस्टर्न यूनिवर्सिटी ऑफ पॉलिटिकल साइंस एंड लॉ में एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए मसूद खान ने कहा कि चीन को बुंजी, दियामार-भाशा और दासू बांध बनाने में मदद करनी चाहिए। चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने पिछले महीने पाकिस्तान की यात्रा के दौरान पाक के कब्जे वाले कश्मीर में किसी भी परियोजना में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। लेकिन मसूद खान के बयान से साफ है कि पाकिस्तान की कोशिश है कि पीओके में चीन की सक्रियता बढ़ाई जाए और इस मसले को और मुश्किल बनाया जाए।

वर्ल्ड बैंक ने हाथ खींचे
प्रस्तावित बांध बुंजी कराकोरम हाई वे से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर है। कराकोरम हाई वे तालिबान के ऐसे इलाकों से गुजरता है जो चीन को पाकिस्तान से जोड़ते हैं। इन बांधों के लिए पाकिस्तान द्वारा चीन की तरफ मदद का हाथ बढ़ाने के पीछे वजह है यह है कि विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने इस मामले में पाकिस्तान को फंड मुहैया कराने से इनकार कर दिया है। दोनों वित्तीय संस्थानों ने स्थानीय लोगों और भारत सरकार के विरोध के बाद दियामार-भाशा बांध को मदद देने से इनकार कर दिया। 
चीन ने किया इशारा
इस मामले पर चीन के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि रणनीतिक नजरिए से पाकिस्तान से चीन का रिश्ता अहम है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हॉन्ग ली ने कहा, हम हमेशा रणनीतिक नजरिए से विभिन्न देशों के साथ रिश्तों को अहमियत देते हैं। ली ने कहा कि दोनों देश (चीन और पाकिस्तान) शांति और स्थिरता के लिए सहयोग करेंगे।

(फोटो कैप्शन: चीन द्वारा तैयार किए गए जे-२० स्टेल्थ लड़ाकू विमान का नमूना) Dainik Bhaskar

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